Pages

Powered By Blogger

Saturday, May 15, 2010

         कविता तू बणती रहीजे
कोयलडी तू प्रीत पाळजे,
कागा कुरळाता रहसी,
तकता रहसी
टोपे-टोपे लोही नॆ .
बेलडी,तू बधती रहीजे
प्रेम रो पंथ बणायो राखीजे
तोडणिया आंता रहसी
तेरे बधते नाळ नॆ.
किरसा,तू तपतो रहीजे
नीं डरीजॆ, बिरखा री
काठ्मीठ सुं
ओळा,आंधी,काळ
डरांता रहसी
तेरे श्रमदान नॆ.
जुवानडा तू जागतो रहीजे
सींव माथे
दिन अर रात,
बेरीडा ताकता रहसी
तेरे उचटतॆ ध्यान नॆ.
कविता, तू बणती रहीजे
अंतस री आवाज़ सूं
धन अर नाम री भूख
दबाती रहीजे
बकणिया तो बकता रहसी
तेरे बधते नाम नॆ   
विश्वनाथ भाटी ,तारानगर

No comments:

Post a Comment